नवरात्री के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

नवरात्री के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

नवरात्रि के विशेष अवसर पर तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चनाकी जाती है ! नवरात्रि का यह तीसरा दिन 24 मार्च 2023 को है। इस दिन माँ चंद्रघंटा की कृपा प्राप्त करने के लिए जाने क्या करें ! देवी चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के अन्य दिनों की तरह ही होती है। नवरात्रि के शुभ तीसरे दिन माँ पार्वती के विवाहित रूप की पूजा की जाती है। वह निडरता और साहस का प्रतीक है और जो इस दिन उनकी पूजा करता है वह उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है। व्रत कथा पड़ना व सुनना नवरात्र के दिनों में अनिवार्य है।

 

मां चंद्रघंटा कथा
जब भगवान शिव मां पार्वती से विवाह करने उनके घर पहुंचे। उन्हें अप्राकृतिक रूप में देखकर और बारात में भूत, पिशाच, साधु आदि होने के कारण उनकी माँ मैना मूर्छित हो जाती है! इस दौरान, माँ पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना करने के लिए माँ चंद्रघंटा का अवतार लिया। बाद में, भगवान शिव ने भी आकर्षक राजकुमार का अवतार लिया। ताकी, विवाह किसी भी वाद विवाद के संभव हो पाएं। अतः दोनों का विवाह बड़ों के आशीर्वाद से संपन्न हुआ !
माँ चंद्रघंटा का स्वरुप बाघ पर सवार हैं। वह अपने माथे पर अर्धवृत्ताकार चंद्रमा (चंद्र) धारण करती हैं, जिसके कारण इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। उनकी दस भुजाये है! देवी चंद्रघंटा अपने चार बाएं हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल धारण करती हैं और पांचवें बाएं हाथ को वरदा मुद्रा में रखती हैं। वह अपने चार दाहिने हाथों में, तीर, कमल का फूल, धनुष और जप माला धारण करती हैं और पांचवां दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रखती हैं।
इस रूप में, मां चंद्रघंटा राक्षसों के खिलाफ/विरुद्ध निर्ममता रखती हैं। दूसरी ओर, वह अपने भक्तों को साहस और वीरता का आशीर्वाद देती हैं। यह माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती है ! इस दिन इनका उपवास करने से जातक का शुक्र गृह मजबूत होता है!

व्रत संकल्प (मंत्र)

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे (भक्त का नाम वर्ष सहित) चैत्रशुक्लप्रतिपदि अमुकवासरे (भक्त का नाम) प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः (भक्त का गोत्र)
अमुकनामाहं (भक्त का नाम) भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये।
नोट: अमुक के स्थान पर नाम, गोत्र और वर्ष अवश्य लिखें!
अर्थ - ॐ विष्णु, विष्णु, विष्णु, आज, युग के अगले भाग में, श्री श्वेतवराह कल्प में, जम्बू द्वीप में, भारत देश में, अमुकनाम, (भक्त का नाम) संवत्सर,(वर्ष)
चैत्र शुक्ल प्रतिपदी अमुकवासर, (भक्त का नाम) नवरात्र पर्व) मैं देवी दुर्गा की कृपा के लिए व्रत रखूंगा / रखूंगी।
नोट: अमुक की जगह नाम, गोत्र और वर्ष याद रखें!

दिन की शुरुआत इस पूजा से करें
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

 

स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटेति रूपेण संस्थिता।
नमो नमः नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थ - जो देवी मां चंद्रघंटा के रूप में सभी प्राणियों में स्थित हैं। "उसे प्रणाम, उसे प्रणाम, उसे प्रणाम!

 

मां चंद्रघंटा की आरती
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥
मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥
पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥
कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥
भक्त की रक्षा करो भवानी।

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