महानवमी तिथि दुर्गा पूजा का तीसरा एवं नवरात्रि का नौवां दिन होता है, इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का नौवां दिन 11 अक्टूबर शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। नवरात्रि के नौवें दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्रि स्वरुप की पूजा की जाती है जिन्हें सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली देवी माना जाता है। माँ सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत तेजस्वी है वह कमल पर विराजमान रहती है और उनकी चार भुजाएं है जो सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल से सुशोभित होती है। महानवमी पर माँ दुर्गा को “महिषासुर मर्दनी” के रूप में पूजा जाता है।
शास्त्र के अनुसार भगवान शिव को माँ सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से ही सभी सिद्धियाँ प्राप्त हुई थी। इनकी श्रद्धाभाव से पूजा करने पर शुभ फलों की प्राप्ति होती है साथ ही नवरात्रि की पूजा सफलतापूर्वक संपन्न होती है।
पूजा विधि
नवरात्रि की नवमी तिथि को माँ सिद्धिदात्री की पूजा के साथ कन्या पूजन करने की परंपरा है।
1. इस दिन स्वच्छ होकर नए वस्त्र धारण करें।
2. पूजा की थाली तैयार कर माता को फूल और अक्षत चढ़ाएं।
3. माता सिद्धिदात्रि को लाल वस्त्र अर्पित करें।
4. मंत्रोचार कर दीप जलाएं।
5. माँ सिद्धिदात्री की आरती करें।
6. माता को भोग लगाएं।
नवमी कन्या पूजन
1. कन्याओं का घर में स्वागत करें।
2. साफ जल से कन्याओं के पैर धोएं।
3. हाथ में कलावा बाधें और माथे पर कुमकुम अक्षत लगाएं।
4. हलवा,पूड़ी और चने का प्रसाद परोसकर भोग लगाएं।
5. कन्याओं को उपहार में चुन्नी, नए वस्त्र या जरूरत का सामान भेट करें।
6. कन्याओं को फल और दक्षिणा भेट करें।
7. सभी परिवारजन कन्याओं के पैर छूकर आशीर्वाद लें।
8. माता का जयकारा लगाकर पूजन सफल करें।
माँ सिद्धिदात्री के इन मंत्रो का करें जाप
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व
ज्योतिष के अनुसार माँ सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती है, देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलती है। माता को हलवा, पूड़ी, चने और नारियल का भोग लगाएं। माता की उपासना सभी सिद्धियों को पाने में सहायता करती है साथ ही भय और रोगों का नाश करती है।