


नवरात्रि का तीसरा दिन देवी चंद्र घंटा को समर्पित है। देवी चंद्रघंटा शिव की शक्ति और राक्षसो का संघार करने वाली हैं । तप के 3000 वर्षों के बाद, पार्वती ने अपने पति के रूप में भगवान शिव को प्राप्त किया। इस रूप में देवी पार्वती ने खुद को एक अर्धचंद्र से सुशोभित किया है, उनके माथे पर अर्धचंद्र घंटी की तरह दिखता है और इसी वजह से उन्हें चंद्र-घण्टा के नाम से जाना जाता है। वह देवी का विवाहित रूप है, जो लाल रेशमी साड़ी और स्वर्गीय रत्नों से सुशोभित है। वह सोमानंदी नाम के एक बाघ पर आरूढ़ हैं और सभी हथियारों से लैस है। वह योद्धा है।
देवी पार्वती के तप से लौटने के बाद, हिमालय ने उनके भव्य विवाह की तैयारी शुरू कर दी। इस दिव्य परिणय संस्कार में भगवान नारायण ने उनके भाई की भूमिका निभाई और उनकी शादी की रस्मे शुरू हुईं। वहीं दूसरी ओरे दूल्हे की तरफ भी तयारी शुरू हुई।
भगवान शिव का बारात असामान्य थी । इसमें बारातियों के रूप में भूत, पिशाच, और प्रेत हैं। दूल्हे को शमशान भस्म (मृतकों की राख), सांप और बाघ की खाल से सजाया गया था, जो एक विशाल बैल के ऊपर उलटे सवार थे। बारात ने देवी के घर पर सभी को डरा दिया था। बारात देखकर उसकी मां मैनावती बेहोश हो गई और उन्होंने अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से करने से स्पस्ट मना कर दिया।
भगवान नारायण शिव के बचाव की रक्षा में आए और उन्हें दुनिया का सबसे सुंदर
परिवेश में सुसज्जित किया। दूसरी ओर, देवी लक्ष्मी और भूदेवी ने देवी पार्वती को सुन्दर दुल्हन सा श्रृंगार किया और उनके सिर को अर्धचंद्र से सुशोभित किया। देवी पार्वती के इस रूप को चंद्र घंटा के नाम से जाना जाता है। इस रूप में देवी पार्वती शिव की शक्ति बानी और उन्होंने भगवन शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
Published on: 04-04-2022