


श्री हरि अपने भक्तों की रक्षा के लिए विभिन्न रूपों में अवतार लेते है। श्री नरसिंह जयंती श्री हरि के अवतार भगवान नरसिम्हा का प्रकटन दिवस के रूप में मनाई जाती है, जिनका प्रादुर्भाव भक्त प्रल्हाद की प्राण रक्षा हेतु हुआ था। जो अपने राक्षसी पिता हिरण्यकश्यप से प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए प्रकट हुए थे। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में नरसिम्हा या नरसिंह चौथे अवतार हैं। नरसिंह देव वैशाख के महीने में शुक्ल चतुर्दशी (उज्ज्वल पखवाड़े के चौदहवें दिन) शाम को प्रकट हुए।
भगवान के वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष के मारे जाने के बाद, हिरण्यकश्यप अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने की इच्छा से उन्मादी हो गया। शक्ति और भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए तप करने लगा।
जब वह घोर तपस्या में लीन था, तब देवराज इंद्र ने हिरण्यकश्यप के अजन्मे बच्चे को मारने के इरादे से उसकी पत्नी कयाधु का अपहरण कर लिया। तब कयाधु की प्राण रक्षा देवऋषि नारद ने की और उसको अपने आश्रम में ले गया जहाँ उसने प्रह्लाद को अपनी माँ के गर्भ में रहते हुए धर्म और भक्ति की शिक्षा दी।
इस बीच, हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा से एक विशेष वरदान मिला कि वह ब्रह्मा के बनाये किसी भी जीव इंसान, देवता, पशु या किसी अन्य इकाई द्वारा नहीं मारा जा सकता। साथ ही, वह किसी भी प्रकार के हथियार से नहीं मारा जा सकता था, न दिन और न ही रात में, यहां तक कि ब्रम्हा द्वारा बनाए गए बारह महीनों के दौरान भी नहीं मारा जा सकता था।
प्रल्हाद हरी का अनन्य भक्त हुआ जो हिरण्यकशिपु को बिलकुल गवारा न था। वह अपने ही पुत्र को उसके साथ विश्वासघात करते हुए बर्दाश्त नहीं कर सका।वह अत्यंत क्रोध में था। आखिर उसी की संतान उसके परम शत्रु का गुणगान गा रहा था। हिरण्यकशिपु ने प्रल्हाद की भक्ति छुड़ाने के कई प्रयास किये मगर असफल रहा। और अब उसने ठान ली के ऐसा पुत्र होने से अच्छा निसंतान रहना है। हिरण्यकशिपु ने प्रल्हाद को मारने के लिए कई आदेश दिए यहाँ तक की उसको जिंदा जलाने की भी कोशिश की!
प्रह्लाद को इतनी पीड़ा में देख नारायण ने हिरण्यकशिपु के अंत का आरम्भ कर दिया। भगवान विष्णु को अब बस हिरण्यकशिपु का वरदान तोड़ना था। इसके लिए भगवान आधे आदमी आधे शेर के रूप में प्रकट हुए, जो ब्रह्मा की रचना नहीं थी, उन्होंने एक नया महीना बनाया जिसे अधिक मास कहा जाता है जो फिर से ब्रह्मा की रचना नहीं थी।उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अपने नाखूनों से किया, हथियार से नहीं, और उसका अंत दिन या रात में नहीं बल्कि शाम में किया , इस प्रकार सभी शर्तों को पूरा किया और हिरण्यकशिपु का अंत कर अपने भक्त की रक्षा की
Published on: 14-05-2022