


आदिगुरु शंकराचार्य अद्वैत दर्शन के जनक और सनातन धर्म का पुनरुद्धार करने वाले महान गुरु थे। 4 वर्ष की अल्पायु में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने वेदों के जटिल श्लोको का पाठ करना शुरू कर दिया था। शैव दर्शनो के अनुसार, भगवान विष्णु ने भगवान शिव को कलियुग में अवतार लेने का आवेदन किया। भगवान शिव ने जो रूप लिया वह आदि शंकराचार्य का था जो वैदिक शास्त्रों पर विश्वास स्थापित करके सनातन धर्म के पुन: स्थापित करने वाले हुए।
आदि गुरु शंकराचार्य अद्वैत विचारधारा के प्रणेता थे। यह हिंदू दर्शन, अद्वैत की अवधारणा में विश्वास करता है। अद्वैतवाद के अनुसार, ब्रह्म और आत्मा के बीच अलगाव का अभाव है। अद्वैतवाद उपनिषद दर्शन पर आधारित है जो इस बात की वकालत करता है कि आत्मा और पूर्ण वास्तविकता यानी ईश्वर के बीच कोई अंतर नहीं। इसी दर्शन के आधार पर आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की भ्रष्ट जड़ों को पुनर्जीवित किया।
आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारखण्ड की सीमाओं के भीतर चार धाम, गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ के साथ भारत की चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की जो आज भी उत्तराधिकारी शिष्यों द्वारा संचालित किये जाते है । इन मठो के संचालको को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है।
Published on: 05-05-2022